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अब भी मेरे सपनो में आती हो…
हाथ पकड़ती थी वो,
कुछ दूर संग मेरे आती थी
देख न ले दुनिया,
जग से नज़रें चुराती थी
मेरे मन के हर कोने में
आशियाँ बनाती जो
तुम अब भी मेरे सपनो में आती हो…
अक़्सर लंबी थी जो राहें लगती,
संग तेरे सिमट जाती थी
जिसकी हर हँसी,
पीहू की याद दिलाती थी
हर सावन की पहली बारिश में,
संग मेरे भीग जाती जो
तुम अब भी मेरे सपनो में आती हो…
दिन तो बीते जैसे-तैसे,
पर रात ठहर जाती थी
अनायास ही मन को मेरे,
याद तेरी आती थी
हर पल हर क्षण संग हो मेरे,
एहसास कराती जो
तुम अब भी मेरे सपनो में आती हो…
………..अभय………..
Bahut khoob dost
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Thanks bandhu..
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Lovely poem.
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Shukriya
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शानदार पोस्ट
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अजेय जी धन्यवाद 😊
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बहुत ख़ूब लिखा है आपने, बधाई |
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धन्यवाद 😊
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Very nicely penned… 🙂
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Thank you ☺️
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Nice one Abhay….
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Thank you 😊
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👌👌👌
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🙏
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बहुत खूब
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धन्यवाद 🙏
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बहुत अच्छा !
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धन्यवाद रितेश जी☺️
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ये आपकी कविता में अभिव्यक्ति बहुत ही अच्छा है। 👌👏
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बहुत सुन्दर 👌
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शुक्रिया शाम्भवी!
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Beautiful emotions of love 🙂
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Well! The season is culprit!😉
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Love can be to anything that you like very much 😀
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Agree! But circumstances play a role.😃
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Very pretty poem. Enjoyed.
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Thanks so much Sir, always pleasing to have your say on my posts!
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इन्तेजार तो प्रेम ही करता है या यूं कहें–जहाँ प्रेम है वहीं इन्तेजार।
कभी आना हमारी गलियों में भूल से,
रुत सावन की राहें भरी है धूल से।
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शुक्रिया मधुसूदन जी,आपकी अनुपस्थिति से हमे लगा कि कहीं आप नाराज तो नही चल रहे! आपकी वापसी से हमे अच्छा लगा
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नहीं भाई जी।ब्यस्तता के कारण नहीं आ पा रहा था।वैसे भूलते कब हैं।
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चलिए आप व्यस्त तो हैं, यहाँ
सुबह होती है शाम होती है
ज़िन्दगी यूँ ही तमाम होती है😉
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bahut khub likha apne.
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शुक्रिया!😊
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