एक और दिसंबर बीत गया..

Wrote it Last Year, Relevant in this year too. Hope you would like this reproduction of an old poem 🙂

the ETERNAL tryst

Pondi Sun Rise or Sun Set? Clicked it in Pondicherry, Bay of Bengal

एक और दिसंबर बीत गया

अभी तो सूरज निकला ही था
और झट में फिर वो डूब गया
एक और दिसंबर बीत गया

अभी बसंत की हुई थी दस्तक
पर अब, पत्ता पत्ता सूख गया
एक और दिसंबर बीत गया

जनवरी में कई कस्में खायी थी हमने
पर अगणित बार वो टूट गया
एक और दिसंबर बीत गया

लाख कोशिशें कर उन्हें मनाया था हमने
पर एक नादानी से वो, हरपल के लिए रूठ गया
एक और दिसंबर बीत गया

हार की कई गाथाएं लिख दी इसने
पर आशाओं के कई पन्नों को भी जोड़ गया
एक और दिसंबर बीत गया

सोचा शाश्वत सा यह पल है
पर बारह किश्तों में ही पीछा छूट गया
एक और दिसंबर बीत गया

स्मृति पटल पर कुछ धुंधले चेहरे
और कई नई छवि को जोड़ गया
एक और दिसंबर बीत गया

स्थिरता…

View original post 18 more words

25 thoughts on “एक और दिसंबर बीत गया..”

  1. गम में एक एक पल पहाड़ की तरह होते हैं और खुशियाँ होती है तो पता ही नहीं चलता साल कैसे गुजर गया ……..लाजवाब लेखन|

    कदमों के निशान छूटे
    कितनों के अरमान टूटे,
    पल पल समय बिताना मुश्किल,
    कुछ का किश्मत रूठ गया,
    एक और दिसम्बर बीत गया|
    कितना सुन्दर साल हमारा,
    आंगन में छाया उजियाला,
    ना देखा हमने तम कैसा,
    कैसे पल ये बीत गया,
    समझ सके ना हम कुछ भी,
    एक और दिसंबर बीत गया
    समझ सके ना हम कुछ भी,
    एक और दिसंबर बीत गया|

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  2. ख़ूबसूरत और प्यारी सी कविता . ज़िन्दगी ऐसे ही निकलती जाती. कुछ ख़ुशियों और कुछ ग़मों के साये आते जाते राहतें हैं.

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