गीत गाऊँ

जीवन में अगणित फूल खिले
सुख के दिन चार ,
दुःख की कई रात मिले
आशाओं की ऊँची अट्टालिकाएं सजाई
नियति को उनमे , कई रास न आयी
कुछ ही उनमे आबाद हुए
कई टूटे , कई बर्बाद हुए
किसे दोष दूँ मैं ,
किसे दुःख सुनाऊँ
जाने मैं कौन सा गीत गाऊँ

स्वयं की खोज में मैंने
कईयों को पढ़ा
सैकड़ों ज़िंदगियाँ जी ली मैंने
मैं सहस्त्रों बार मरा
सोचा था कि तुम संग,
चिर अन्नंत तक चलोगे
मुझे क्या पता था कि तुम
पग – पग पर डरोगे
किसे मैं जीवन के ये अनुभव सुनाऊँ
जाने मैं कौन सा गीत गाऊँ

ये भ्रम में न रहना कि
मैंने ये दुःख में लिखा है
या अपने आसुंओ को मैंने
स्याही चुना है
ये उनके लिए हैं
जो ज़िंदा लाश नहीं हैं
या उनके लिए है
जिन्हे अभी खुद पर विश्वास नहीं है
अन्नंत आघात हैं मुझपर, फिर भी मुस्कुराऊँ
“विपदाओं में टूटकर बिखरो नहीं”, मैं यही गीत गाऊँ

……….अभय ………

37 thoughts on “गीत गाऊँ”

  1. वाह ।।।।
    आखिर भावनाएं शब्द बन बरस ही गयी। लाजवाब भाई।

    उम्र ढले फिर मैं कच्चा,
    मेरा दिल अब भी है बच्चा,
    कभी हँसूँ कभी नीर बहाऊँ,
    जहाँ दिखाने को मुस्काऊँ,
    फिर भी कैसे उसने जाना,
    हँसने पर भी गम पहचाना,
    पूछ दिया आखिर क्या गम है,
    तेरी ये आँखें क्यों नम है,
    टूट गए जो बाँध बंधे थे,
    दिल में जो तूफान दबे थे,
    तड़प उठे और दिल भर आईं,
    जेष्ठ नयन सावन बन आई,
    होठ हिले वे मौन खड़े थे,
    अश्क भरे और रुंध गले से,
    कैसे उन्हें अतीत सुनाऊँ
    जिद्द उनकी क्या गम सुनने को,
    कैसे जीवन गीत सुनाऊँ।

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    1. Oh! Thanks for such a wonderful response! When I write these poems, I am always skeptical that my generation will appreciate it or not as they are much allured by Chester Bennington type songs 😊

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    1. Thanks so much Amit Bhai! I am spellbound by your response. I don’t know I am good at reciting or not, abhi ke liye likha hi sahi lagta hai..😀
      Apke sneh ke liye shukriya!

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  2. Such a beautiful thought Abhay
    ‘अन्नंत आघात हैं मुझपर, फिर भी मुस्कुराऊँ 
“विपदाओं में टूटकर बिखरो नहीं”, मैं यही गीत गाऊँ ‘
    Uplifting words!!

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