जमी बर्फ़ ..

हर रोज़  कई  बातें

तुमसे  मैं  कर  जाता  हूँ

कुछ  ही  उनमें  शब्द  बनकर

जुबां तक आ पाती हैं

कई उनमें  से  मानो

थम  सी  जाती  हैं

ह्रदय  में  कोई  बर्फ़  जैसी

 ज़म सी  जाती  है!

रिश्तों  की  गर्माहट  पा दबे  शब्द  भी

कभी तो  निकलेंगे

सभी  पुरानी  जो  बर्फ़  जमीं  है

कभी  तो  वो  पिघलेंगे

पिघली हुई  बातें  जब

कल-कल  कर  बह  जाएँगी

तब  भी  क्या  तुम  किसी  शैल  सा

खुद  को  अडिग  रख  पाओगी

या  नदी  किनारे  की  मिट्टी  सी

खुद ही  जल  में मिल  जाओगी

तुम भी पिघल जाओगी

…….अभय…….

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