विश्वास..

सपने, अपने जो ध्वस्त हुए
उन मलबों को मैं उठाता हूँ
खंडहरों में अंधियारा है फैला
मैं उसमें दीप जलाता हूँ
विध्वंस हुआ, बस नींव बची है
मैं फिर से श्रृजन कर जाता हूँ

अभय

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