नमस्ते मित्रों !
गीत या काव्य अभिव्यक्ति की वह विधा है जिसमें लेखक या कवि विषय भाव के सागर में डूब कर अमूल्य मोती बाहर ले आता है! जो चीजें दिखती हैं, उसके बारे में लिखना आसान होता है, परन्तु मैं यह सोचने पर विवश हो जाता हूँ कि कोई व्यक्ति भगवान कि विषय में इतना कैसे डूब जाता है कि वह उत्कृष्ट रचनाओं का सृजन सुगमता से मार्मिकता के साथ करने में सक्षम होता है.
आज मैं आप सब के समक्ष श्रीपाद वल्लभाचार्य द्वारा रचित भगवान श्री कृष्ण को समर्पित एक गीत या भजन को प्रस्तुत कर रहा हूँ. वल्लभाचार्य 15 वीं शताब्ती के भक्ति मार्ग के आचार्य थे और प्रसिद्ध शासक राजा कृष्णदेव राय के समवर्ती थे.
किसी भी गीत का life cycle कितना हों सकता है, इस विषय पर हम यदि सोचे तो अलग अलग उत्तर मिलेगा, पर यह भजन 500 साल से ज़्यादा प्राचीन है और अब भी प्रचलित है, इसकी महत्ता बताने के लिए काफी है
हो सकता है आप में से कईयों ने इसको सुना या पढ़ा हो, पर जो व्यक्ति इससे वंचित रह गए हों, उनके लिए यह आनंद का श्रोत हो सकता है.
इस भजन का नाम “मधुराष्टकम” है. मधुर मतलब मीठा और अष्टकम मतलब इसमें आठ छंद या stanza हैं. इसमें भगवान के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है.
मूलतः यह रचना संस्कृत में है, पर जो व्यक्ति हिंदी समझ सकते हैं उनको अधिकांश शब्दों के अर्थ आसानी से समझ आ जायेंगे, और जिन शब्दों के अर्थ समझ न आये उसके लिए उन्हें थोड़ा परिश्रम करना होगा. Internet पर आसानी से अर्थ मिल जायेंगे, और शायद से Wikipedia पर भी इसका अर्थ है . इस भजन को कई प्रसिद्ध गायकों ने स्वर दिया है परन्तु मुझे Pandit Jasraj और M.S. Subbulakshmi की आवाज़ में यह रचना काफी अच्छी लगती है. आप भी आंनद ले सकते हैं
मधुराष्टकम्
अधरं मधुरं वदनं मधुरं
नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ १ ॥
वचनं मधुरं चरितं मधुरं
वसनं मधुरं वलितं मधुरम् ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ २ ॥
वेणु-र्मधुरो रेणु-र्मधुरः
पाणि-र्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ३ ॥
गीतं मधुरं पीतं मधुरं
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ४ ॥
करणं मधुरं तरणं मधुरं
हरणं मधुरं स्मरणं मधुरम् ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ५ ॥
गुंजा मधुरा माला मधुरा
यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ६ ॥
गोपी मधुरा लीला मधुरा
युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ७ ॥
गोपा मधुरा गावो मधुरा
यष्टि र्मधुरा सृष्टि र्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ८ ॥
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