
पावों में हैं बेड़ियाँ
हाथों में है पाश
मैं खड़ा जमीं पे
पर, दृष्टि में आकाश
सुविधाएँ तो थी नहीं
साधन भी मुझे मिला नहीं
दर-दर की ठोकरे खायीं
पर, किसी से कोई गिला नहीं
सब कहते हैं, भाग्य में हो जितना
केवल, उतना ही तो मिलता है
पर करें क्या कि, जिद्दी है मन मेरा जो कहता
पुरुषार्थ भाग्य बदलता है
……अभय ……
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