2012 की शोरगुल, हल्ला गुल्ला, प्रतिरोध, प्रदर्शन, रोष, एकजुटता सबकुछ मेरे मानस पटल पर आज भी अंकित है. मैं भूला नहीं. कारण यह कि शायद 2012 आते-आते मेरी संवेदनशीलता अपना स्वरुप ग्रहण करने लगी थी. उस घृणित कृत की पुरजोर भर्त्स्ना कुछ इस कदर हुई थी कि मुझे लगा कि यह भारतीय इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना के तौर पर याद किया जायेगा. मेरा मानना था कि इतने व्यापक प्रदर्शन और दोषियों का पूरे समाज द्वारा एक स्वर में निंदा, लज्जित एवं न्यायलय द्वारा कठोर सजा के एलान के बाद ऐसी घटनाओं की पुर्नावृत्ति नहीं होगी.
मैं गलत था. शोर-शराबे से कुछ नहीं होता. और शोर शराबा होता भी कहाँ हैं. टी.वी. पर, सोशल मीडिया पर, कुछ लोग ब्लॉग का सहारा लेते हैं, तो किसी को अपनी राजनीतिक रोटियां सेकनी होती हैं.. आदि आदि …पर समय के साथ सब ठंडा पड़ने लगता है और वे कहते भी हैं न कि Time Is The Greatest Healer. हमारी स्मरणशक्ति का क्या कहना ..जीवन के संघर्ष में सब खो जाता है ..सभी यादें धुल जाती हैं…
फिर कोई कठुआ में तो कोई उन्नाव में, सूरत में या तो सासाराम में उन घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है.. समाचार वाचकों को कुछ नया बोलने को मिल जाता है, कवियों को काव्य का नया विषय मिल जाता है, प्रतिपक्ष, पक्ष को घेरने में लग जातें हैं, निंदकों को भारतीय न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाने का मौका मिल जाता है…और मुझ जैसे बेकार को कुछ नया सोचने को मिल जाता है…और इन सबके बीच कोई लड़की (नाम, जाति और धर्म तो आप सब जानते ही होंगे) कहीं और की यात्रा शुरू करने को विवश हो जाती है.. और शायद ये उसके लिए भी अच्छा ही है कि वो यात्रा करे, यदि वो यहाँ से नहीं निकलती तो भी लोग उसे जीने तो देते नहीं …
#SolidarityWith****** #JusticeFor****** #WeAreWithYou***** #RIP*****
हा..हा..अच्छे शब्द हैं ….हैशटैग का जमाना है…..चलने दीजिये …..