अकेले चलने में बुराई क्या है ?

 

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अकेले चलने में बुराई क्या है ?

कि जब हुआ अकेले आना

और जाना भी है अकेले

तो फिर क्या सोचना

कि ये तन्हाई क्या है

अकेले चलने में बुराई क्या है ?


कि जब सिंधु में ही है गोता लगाना

और छिपे सागर के मोती

को खुद ही सतह तक लाना

तो फिर क्या सोचना

कि सागर कि गहराई क्या है

अकेले चलने में बुराई क्या है?


कि जब इंतज़ार है हर किसी को

कि कोई राह दिखायेगा

बुझे हुए दीपक की लौ

कोई फिर सुलगायेगा

तो फिर हर दो कदम पर रुक कर

ये अंगड़ाई क्या है

अकेले चलने में बुराई क्या है?


कि जब पल भर में यहाँ

रिश्ते बदल जाते हैं

जिन्हें थे अपना समझते

वे कहीं और नज़र आते हैं

तो फिर क्या सोचना

कि इन रिश्तों कि कमाई क्या है

अकेले चलने में बुराई क्या है?


कि जब सुनसान राहों पर

कोई साथ नहीं दिखता

पकड़ ले कस के जो हाथों को

वो हाथ नहीं दिखता

तो राही चल अकेले और नाप ले

नभ की भी ऊंचाई क्या है

अकेले चलने में बुराई क्या है?

………..अभय………..

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