
एक और दिसंबर बीत गया
अभी तो सूरज निकला ही था
और झट में फिर वो डूब गया
एक और दिसंबर बीत गया
अभी बसंत की हुई थी दस्तक
पर अब, पत्ता पत्ता सूख गया
एक और दिसंबर बीत गया
जनवरी में कई कस्में खायी थी हमने
पर अगणित बार वो टूट गया
एक और दिसंबर बीत गया
लाख कोशिशें कर उन्हें मनाया था हमने
पर एक नादानी से वो, हरपल के लिए रूठ गया
एक और दिसंबर बीत गया
हार की कई गाथाएं लिख दी इसने
पर आशाओं के कई पन्नों को भी जोड़ गया
एक और दिसंबर बीत गया
सोचा शाश्वत सा यह पल है
पर बारह किश्तों में ही पीछा छूट गया
एक और दिसंबर बीत गया
स्मृति पटल पर कुछ धुंधले चेहरे
और कई नई छवि को जोड़ गया
एक और दिसंबर बीत गया
स्थिरता मरण, गति जीवन है
शायद से वो, चीख-चीख कर बोल गया
एक और दिसंबर बीत गया
………अभय ………
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