तिमिर हारे,
चहुँदिशि प्रकाश ही प्रकाश हो
अयोध्या रुपी शरीर में
ह्रदय रूपी सिंहासन पर
श्रीराम जी का वास हो
फिर, उल्लास ही उल्लास हो
~अभय
तिमिर हारे,
चहुँदिशि प्रकाश ही प्रकाश हो
अयोध्या रुपी शरीर में
ह्रदय रूपी सिंहासन पर
श्रीराम जी का वास हो
फिर, उल्लास ही उल्लास हो
~अभय
घर घर में अगणित दीप जलेंगे फिर से इस बरस
देखना है क्या राम भी आते हैं! देने अपनी दरस
~अभय
घनघोर अँधेरा
नहीं कहीं सवेरा
अंतहीन निशा
भटकी दिशा
व्याकुल मन
आँखे नम
चित विचलित
नहीं कोई परिचित
बैठे रहे मौन
लगे सब कुछ गौण
लगा जीवन गए हार
विषाद अपार !! विषाद अपार !!
तभी कही एक दीपक जला
विभावरी से एकल लड़ा
गुप्प अंधकार
किये सहस्त्रों प्रहार
कम्पित लौ चिर तिमिर से जूझा
लगे, अब बुझा तो तब बुझा
दीपक ने फिर युगत लगाया
खुद से सहस्त्रों दीप जलाया
भयभीत अंधकार
एक दीप से गया हार
रात ढली,अरुणोदय और प्रकाश
हर्षोल्लाष !! हर्षोल्लाष !!
संशय क्षीण, सत्य का ज्ञान
अब और चाहिए क्या प्रमाण
जब, यह सीखा गए स्वयं घनश्याम
जय श्री राम!! जय श्री राम!!
………अभय………