मैं निहत्था हूँ कब से
और तेरे हाथों में है दो-धारी तलवार
पर इतनी हड़बड़ाहट से, घबराहट से
तुम उसे क्यों चला रहे हो ?
कि मैं सुरक्षित हूँ
और तुम खुद ही को
घायल करते जा रहे हो !
कि तुम दो पल साँसे धरो
पूरी ताकत इकट्ठी करो
और फिर जो हमला करना ही है तो,
जम के करो, दिल से करो 😉
…….अभय……