
मृतप्राय तुम भय के सम्मुख
हर क्षण अविरल अश्रुधार पीते हो
व्यर्थ तुम्हारा जीवन जग में जो तुम
यूँ पल-पल घुट-घुट कर जीते हो
डर अधम है, डर पाप है
सबसे बड़ा यही अभिशाप है
यही कारण है पुरुषार्थ के खोने का
आशाओं के सम्मुख भी फूट -फूट कर रोने का
वीरों की हत्या जितनी उनके
चिर शत्रुओं ने न की है
इस निकृष्ट भय ने उससे कहीं ज़्यादा
उनकी प्राण हर ली है
हे मनु पुत्र तुम
इस पाश्विक भय का परित्याग करो
चुनौतियों से जूझो तुम
उसे सामने से स्वीकार करो
कोई यूँ ही नहीं अपने आप ही
राणा प्रताप कहलाता है
लोहे के चने चबाता है ,
भय को भी नतमस्तक करवाता है
जिस दिन भय पर विजय तुम्हारी होगी
पथ और लक्ष्य का अंतर पट जायेगा
भयाक्रांत कमजोर समझता था जो खुद को
वह मानव, देव तुल्य बन जायेगा
……..अभय ……..
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