
गांव मेरा और शहर तेरा
तेरे शहर में सभी
मेहमान से क्यों हैं ?
भीड़ तो है सड़कों पर मगर
एक दूजे से अनजान क्यों हैं?
याद आता है मुझे मेरा गांव
मिट्टी की ख़ुशबू, वो पीपल की छांव
गाय चराते वहां के गोपाल
हँसी-ठहाको से भरा चौपाल
तेरा शहर बड़ा व्यपारी है
यहाँ पानी तक बिकता है
मेरे गांव में सुबह शाम
बुजुर्गों से दुआएं मुफ्त में मिलता है
सड़के तेरे शहर की चौड़ी चौड़ी
यहाँ मन क्यों संकरी हो जाती है?
गांव में तो बिजली नहीं है फिर भी
मन से सबके सरलता की प्रकाश आती है
तेरे शहर में तुझे लोग
बड़ी गाड़ी और बड़े घर से जानते हैं
गांव में मुझे आज भी
मेरे पिता के नाम से पहचानते हैं
तेरे शहर में परिवार व्यवस्था है टूट रहा
संग अपनों का है छूट रहा
अब यहाँ पश्चिम की तस्वीर दिखती है
मेरे गांव ही है जहाँ भारत की आत्मा रहती है
चलो गांव में कि अब भी वहां पर
पीने को शुद्ध पानी और हवा मिल जाएगी
ज़्यादा नहीं तो दो चार साल और ज़्यादा ही
ज़िन्दगी में हँसी के पल जुड़ जाएगी
…………..अभय………………
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