सुना है चुनाव है,
बहुत निकट है
परस्थितियां भी अबकी
घोर विकट है
भवसागर की छोड़ो,
किसे पड़ी है?
यहाँ चुनावी नैया
मझदार खड़ी है
“विकास” रूपी पतवार
गर्त में गया है
प्रतिमा के सिवा नहीं,
कुछ भी नया है
रफाएल पर विपक्ष का
पुरजोर है हमला
“भ्रष्टाचार मिटेगा”
क्या ये भी था जुमला?
जीवन में सहर्ष जो कभी
राम नहीं गाते हैं
मरणासन्न हो उन्हें क्या
राम याद आते हैं?
…….अभय ……
Note: A true poet doesn’t side with any establishment. Neither Left nor Right. Read it in this perspective.