Nature as Teacher

If you think,

“I am alone..

Circumstances are too hostile for me..

I don’t have any inspiration to emulate..

I am too tiny to make a difference..

I doubt myself and I will give up soon .. “

Just have a look at my click, which I captured today. It told me a heck of a story, Did you hear them?

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बस तेरा इंतज़ार है..

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Credit: Google Image

धम से गिरे
धरनी पर
शिखर से,
ज़ख्म गहरा हुआ
चोट हरा हुआ
पर गिरने का यह पहला
वाक़या तो न था
कई पहले भी लुढ़के
गिरे गर्त में
वर्षों तक
सिसकते रहे
मरणासन्न रहे
संवेदनहीन रहे
निर्जीव सा गौण रहे
व्योम सा मौन रहे
पर लड़ते रहे
जूझते रहे
झुलसते रहे
आपदाओं में
विपदाओं से
लोगों की विष भरी
बोली से
आलोचकों की अगणित
टोली से
तो तुम जो गिर गए
तो इसमें नया क्या था?
कि अब तुम उठते ही नहीं
कि तन के ज़ख्म भी
जब सूखते हैं
हम उसे कुरेदते नहीं हैं
तो मन के ज़ख्म पर
ये अत्याचार क्यों?
स्मरण रहे कि
जो शिखर पर तुम पहुंचे थे
तब भी पुरुषार्थ लगा था
फिर से पुरुषार्थ लगेगा
कि तुममें जो नैसर्गिक है
वो भला तुमसे कौन लेगा?
कि अब दुर्बलता छोड़ो
कि सब तैयार हैं
हिमालय की
सबसे ऊँची चोटी को
बस तेरा इंतज़ार है

…….अभय …….

कविता का भाव आप लोगों तक पहुंचा हो, तो अपने भाव मुझ तक पहुँचाना न भूलें 🙂

शब्द सहयोग:
गौण: Subordinate, Secondary
व्योम: Sky, Space
नैसर्गिक: Inherent

She shines

Who motivates us?

When someone achieves some extraordinary feat, even when they face a lot of hurdles and pains in their way, in my opinion, those persons motivate us. Isn’t it?

But, it is true that this is not the case for all of us, as many claims that they are self motivated. Many argue that no humans can be their motivation as they are only motivated through divine aspect of the nature.

Have you ever been in any situation in your life where you have felt that you are alone amidst the mob? Yes, No.

Anyway, Skip this question and face a new one.

Have you ever been really alone and secluded, where no one is besides you and the closet person are physically situated miles apart from you? I think most us wouldn’t have experienced this kind of situation.

Six girls decided the fate that they are going to place themselves in the same situation and that too willingly. They are Lieutenant Commander Vartika Joshi , Lieutenant Commander Pratibha Jamwal, Lieutenants P Swathi, Vijaya Devi, Payal Gupta and B Aishwarya.

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Credit: Internet

Do you know them? Yes, No. Doesn’t matter, even I were oblivious of them till recently.

I think they are worth knowing. That is why I decided to write about them.

All of them, whose name I have mentioned, are officers of Indian Navy and they have decided to circumnavigate the earth without any assistance of their male counterpart. This means that all women crew, for the first time in the History of India, have decided to have a complete a circle around the earth in a ship called INS Tarini. They have already started the journey and has reached the first leg of it.

 

 

 

The mission is termed as Navika Sagar Parkirama. This mission was flagged by, first full time female Defence Minister of India, Nirmala Sitaraman.

Few facts about the mission:

  • INSV Tarini is 55 foot sailing vessel built indigenously in India by M/s Aquarius Shipyard Pvt Ltd, Goa.
  • The expedition will be covered in five legs, with stop-overs at 4 ports Fremantle (Australia), Lyttleton (New Zealand), Port Stanley (Falklands), and Cape Town (South Africa) for replenishment of ration and repairs as necessary.
  • It will circumnavigate globe in approximately 165 days and is expected to return to Goa in April 2018.
  • The ship will promote Make in India, as it is indigenously built.
  • The crew will check and collect the data for marine pollution.

Many of you would be aware that in ancient time, Indians were not supposed to cross over the oceans, because it was termed as inauspicious. That was the day and this is the day, when only women crew has started a voyage to break the shackles of the idea that women are subordinate to men and they can’t venture alone in life. Imagine the journey, it will not be easy. There will be dark nights, and that too in ocean. There may be no humans in their sight for miles. The sound of the ripples of the ocean may be horrific.  Some waves will be huge. They may encounter some pirates in their journey. The ship is not too big and waves and thunderstorm may test their mettle in mid way. But they are prepared for it. They have already faced the waves of prejudice and subjugation by male dominated society, probably their voyage will be easier than the voyage that women has had over the centuries in India. They have decided to lost in joy of the journey, and when they will return back to Indian Coast, probably many Indians will discover a new perspective.

These all  girls inspired me, and I hope they will also inspire you!!!

 

 

जीवन मतलब चुनाव

राखी की छुट्टी तो मिली नहीं, पर वीकेंड था और फिर एक दिन के लिए आप अस्वस्थ तो हो ही सकते हैं 😁. तो फिर मैं बिना समय व्यर्थ किये अपने बहन के घर राखी के एक दिन पहले पहुँच गया. बहन ने पूछा कि कल खाने में क्या बनाऊं..मैंने झट से बोला.. और क्या नाश्ते में बटर मसाला डोसा और लंच में पनीर की कोई सी भी सब्जी..बहन हँस के बोली कभी और भी कुछ फरमाईश कर लिया करो….
जब बहन चली गयी तो, तो मेरा ध्यान उस प्रश्न पर गया. “खाने में क्या बनाऊं ?” थोड़ी सोच की गहराई में गया तो ध्यान आया कि वास्तव में यह प्रश्न एक चुनाव की तरह है, जिसमे आपके सामने कई विकल्प होते हैं और उन विकल्पों में से आपको एक विकल्प का चयन करना होता है.. फिर मैं शाम को पार्क में टहल रहा था और
जो विचार आया तो उसे आपके समक्ष छोड़ रहा हूँ. सम्भालिये इसको..

कुछ मुस्लिम और तथाकथित साम्यवादी राष्ट्रों (Socialist Nations) को छोड़ दें तो दुनिया ने मुख्यतः लोकतंत्रीय प्रणाली शासन व्यवस्था (Democratically Elected Forms of Government)को अपनाया है. लोकतंत्र का विचार सुनने भी अच्छा लगता है. इसलिए जो राष्ट्र लोकतंत्रीय नहीं है वह भी अपने को लोकतंत्रीय साबित करने में लगे रहतें हैं. वे भी चुनाव करवाते हैं, भले ही चुनाव में एक ही पार्टी क्यों न रहे (चीन को ही ले लीजिये ना), या चुनाव पक्षपात से पूर्ण हो (मैं रूस का नाम नहीं लेना चाहता क्योंकि उन्होंने हमारे बहुत कठिन समय में कंधे से कन्धा मिलाकर सफर तय किया हैं, पर सत्य को कोई झुठला भी तो नहीं सकता).

ख़ैर छोड़िये, हममें से कई हैं जो लोकतंत्र को भी पसंद नहीं करते होंगे. उनको लगता होगा कि काश हमारे देश में भी चीन की तरह एक सख्त सरकार होती तो निर्णय लेने और उसको जमीं पर हकीकत में लाने में सहूलियत होती. और यदि चीन के पिछले तीन दसक के विकास रफ़्तार और दुनिया में उसकी बढ़ती साख को देखेंगे थो हमें यह विचार और भी अच्छा लगने लगेगा.

ख़ैर मैं इसपर ज़्यादा तर्क नहीं करूँगा और एक बात जो मैंने किसी साहित्य में पढ़ी थी, उसको वापस दोहराऊंगा. Don’t compare practical Democracy with ideal Autocracy. मतलब कि “व्यावहारिक लोकतंत्र की तुलना किसी निरंकुश शासन से ना करें”.

चलिए ये तो हो गयी भूमिका. अब आते है आज के तत्व पर. लोकतंत्र की सबसे आवश्यक गतिविधि क्या है? तो निश्चय ही “चुनाव” पहले स्थान पर आएगा. चुनाव के माध्यम से ही हम प्रतिनिधि चुनते है और अपेक्षा रखते है कि वह हमारी आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करेगा.

भाई, ये चुनाव हैं बड़ा लाजवाब चीज. और आपके बता दूँ कि मैं खुद को राजनितिक चुनाव तक सिमित नहीं कर रहा हूँ. मैं जिस चुनाव कि बात कर रहा हूँ वह हमारे पुरे जीवन में व्याप्त हैं. या यह कहना कि जीवन “चुनाव” ही है exaggeration (हिंदी में उपयुक्त शब्द नहीं सूझ रहा था, शायद अतिशयोक्ति हो) नहीं होगा.

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अब देखिये ना चुनाव भी कैसे कैसे हो सकते है: कौन सा लड़का या लड़की जीवन के लिए सही होगा या होगी, यहाँ पर चुनाव; प्रेम के पश्चात विवाह या विवाह के पश्चात प्रेम, इसको तय करना;अब बच्चे हुए (अब क्या करें, ये तो होते ही है ) तो उनको कौन से विद्यालय में भेजना वहां पर चुनाव, बच्चों को पढ़ने के लिए कौन सा विषय चुनना, वहां पर चुनाव, पढ़ाई करना या खेल में भाग्य आजमाना, यहाँ भी चुनाव, IPL में कौन सी टीम का पक्ष लेना वहाँ पर चुनाव, सम्माननीय राहुल गाँधी जी को चुनना या 56 इंच के सीने वाले मोदी जी को चुनना यहाँ पर चुनाव, मैगी खाना या पतंजलि आटा नूडल पकाना, यहाँ पर चुनाव, शाकाहारी बनाना या मुर्गे कि टांग दबोचना, यहाँ भी चुनाव, यदि आपकी माशूका को कोई बहुत घूर रहा है तो तत्काल में ही उसकी आगे की दो दांतों को तोडना या योजनाबद्ध तरीके से उसपर हमला, ये सभी चुनाव के ही उदाहरण हैं.. आप और भी उदाहरण सोच सकते हैं, क्योंकि सोचने में किसी के पिताजी की रोक टोक तो है नहीं 🙂

इन चुनावों के अलावा एक और चुनाव हम सबके जीवन में आता है, और वह चुनाव है बड़ा महत्वपूर्ण . वह है जीवन रूपी युद्ध. इस जीवन रूपी युद्ध के चुनाव में केवल दो विकल्प होते हैं

1. संघर्ष
2. समर्पण

समर्पण भी कोई ख़राब विकल्प नहीं है, इसमें आपको प्रतिस्पर्धा का डर नहीं होता, न ही अथक परिश्रम की जरुरत, न तो किसी स्वानुशासन का कष्ट और न ही लोगों की अपेक्षाओं का बोझ.
पर इसकी एक अजीब सी शर्त है, जो खुद्दार लोगों को कभी मान्य नहीं हो सकती और वो है समर्पण के लिए आपका स्वाभिमान मरा हुआ होना चाहिए. और यदि आपका स्वाभिमान मर चूका है तो समर्पण कर सकते हैं

समर्पण के विपरीत होता है संघर्ष. भले ही सकल जगत आपके खिलाफ हो पर यदि संघर्ष की भावना बची हुई है और मन में यह विश्वास बचा है कि आपका उद्देश्य जायज़ है तो इसको अपनाया जा सकता है. संघर्ष में दो संभावनाएं हैं विजय या वीरगति. योद्धा के लिए दोनों स्थिति ही मान्य होनी चाहिए. इसकी सत्यापन स्वयं श्री कृष्णा करते हैं. मैं गीता पढ़ रहा था तो एक श्लोक पर दृष्टिपात हुआ इस श्लोक में भगवान अर्जुन को संघर्ष का मतलब समझाते हैं

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्‌ ।

तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥2.37॥

हे कुन्तीपुत्र! तुम यदि युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे या यदि तुम जीत जाओगे तो पृथ्वी के साम्राज्य का भोग करोगे | अतः दृढ़ संकल्प करके खड़े होओ और युद्ध करो |

भैया-बहनों को राखी की पूर्व शुभकामनायें और मित्रों को Belated Happy Friendship Day. वे यह लेख उपहार स्वरुप रख सकते हैं …. 🙂

जीत-हार

जीत-हार

हार के कगार पे

बैठे जो मन हार के

आगे कुछ दिखता नहीं

अश्रु धार थमता  नहीं

शत्रु जो सब कुछ लूट गया

स्वजनों का संग भी छूट गया

ह्रदय वेदना से भरी हुई जो

खुद की बोझ भी सहती नहीं वो

याद रहे हरदम

ज़िंदा हो अभी , मरे न तुम

वह कल भी था बीत गया 

यह पल भी बीत जाएगा

एक संघर्ष में हार से

युद्ध हारा नहीं कहलायेगा

सत्य धर्म के मार्ग चलो

हार से तुम किंचित  न डरो

सत्य धर्म जहाँ  होता है

वहीं जनार्दन होते हैं

जहाँ जनार्दन होते है

वहीं विजयश्री पग धोती है

……अभय…..

प्रतिस्पर्धा / Competition

आज दोपहर को खाने पर एक संबंधी के यहाँ जाना हुआ. सामान्यतः मुझे बाहर किसी के घर जाकर खाना, तबकी जबकि आप अकेले बुलाये गए हों, पसंद नहीं हैं . पर उनका काफी दिनों से आग्रह था तो मैं तैयार हो गया. उनके घर पहुँचा तो काफी खातिरदारी हुई. और खातिरदारी किसे अच्छी नहीं लगती.

उनके घर में बहुत सी बातें हुई. मेरे बारे में, घर के बारे में, मेरे प्रोफेशनल कैरियर के बारे में. मैंने भी कुछ कुछ बातें पूँछी. बात चीत के क्रम में यह पता चला की उनका लड़का रोहित इस बार ग्यारहवीं में गया है और हर माँ बाप की तरह उनको अपने बेटे के भविष्य की चिंता सता रही थी कि आगे जा के लड़का क्या करेगा.

उन्होंने बताया कि रोहित पढाई में औसत है, खेल में भी रूचि नहीं लेता और उसका कोई और शौक भी नहीं है. वे बोले कि हम यह नहीं चाहते कि रोहित सिर्फ पढाई करे बल्कि हम चाहते हैं कि उसको जो भी पसंद हो वो वही करे. अफ़सोस है कि वह अपनी रूचि जाहिर ही नहीं करता. जिससे की जीवन की दिशा तय करने में उन्हें परेशानी आ रही है . उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं उससे बात करूँ. शायद वह मुझे कुछ बताये.

मैंने बोला “ठीक है, मैं कोशिश करता हूँ कुछ बात करने की”. फिर बात-चीत के बाद हम खाने पर बैठ गए. वैसे सच कहूँ तो मुझे इसका इंतज़ार भी था, भूख जोरों की लग गयी थी और बातों  से पेट तो नहीं भरता ना. खाने में मेरी पसंदीदा शब्जी शाही पनीर, मशरूम, दाल मखनी, रोटी, पुलाव और अंत में मिठाई के दो-तीन प्रकार थे. खाना शानदार बना था. अंगुली चाट के खाने लायक. पर मैंने थोड़ी सभ्यता और शिष्टाचार का परिचय देते हुए अंगुली नहीं चाटी.

मैं और रोहित ने खाना साथ में खाया और खाने के पश्चात उसने मुझे अपने कमरे में आराम करने को कहा. सच कहूँ तो मैं भी उससे अकेले में ही बात करना चाहता था. उसका कमरा बहुत खूबसूरत था. अल्बर्ट आइंस्टीन की एक बड़ी सी तस्वीर जिसमे वह अपने जीभ को निकले हुए थे, दीवाल से लटक रहा था. एक तरफ की अलमारी साजो सज्जा के सामान से भरी पड़ी थी तो दूसरी ओर पुस्तकों, कॉमिक, नोवेल्स से भरी थी.

यद्यपि हमारे परिवार का सम्बन्ध काफी घनिष्ट है, पर मैं बहुत दिनों से उनके घर नहीं गया था. रोहित जब छोटा था तो मैं उसको बहुत समय अपने साथ रखता था., तब वह मेरे घर के बहुत करीब रहता था. और फिर मैं भी शहर से बाहर चला गया, तो उन लोगों से बातचीत और संपर्क न के बराबर ही थी.

आज क्रिकेट का मैच आ रहा था तो मैंने सोचा कि बात चीत शुरू करने का इससे अच्छा साधन भारत में और कुछ नहीं हो सकता. बात चीत से पता चला कि उसको कम उम्र के बावजूद क्रिकेट के बारे में बहुत कुछ पता था. फिर मैंने पढाई के सम्बन्ध में बातें भी की. मुझे वह बहुत प्रभावशाली लगा. मैंने उससे पूछा की आगे क्या करना चाहते हो?? उसने लपक कर जवाब दिया, “पापा ने आपसे पूछने को बोला क्या”?
मैं  हँसा और बोला “नहीं, नहीं बस यूँ ही पुँछ रहा हूँ, क्या पापा हमेशा ऐसे ही टार्चर (Torture) करते हैं ?”. उसने कहा “हाँ ऐसा ही समझिये, पर मैंने अभी सोचा नहीं है कि मुझे क्या करना हैं “. मैंने पूछा “क्रिकेट के बारे में इतनी बारीकी से जानकारी रखते हो तो क्या क्रिकेटर बनना चाहते हो”. उसने जवाब नकारात्मक में ही दिया. फिर वह स्वतः ही बोला “मुझे इंजीनियर बनना है.”

मैंने कहा “अरे वाह ! यह तो अच्छी बात है. तो फिर समस्या क्या है” उसने कहा “मैंने सुना है कि IIT- JEE की परीक्षा जो देश कि सर्वोत्तम इंजीनियरिंग संस्थान है उसमें कॉम्पटीशन  बहुत ज़्यादा और कठिन होता है. मुझे लगता है कि मैं उसको पास नहीं कर पाउँगा, पर यह भी बात सच है कि मैं उसके अलावा कहीं और नहीं पढ़ना चाहता.”

मैं समझ गया कि रोहित का उद्देश्य तो है और वह उसको पाने में सक्षम भी है पर परीक्षा में लाखों की संख्या में प्रतिभागी होते हैं और वह उससे जनित प्रतिस्पर्धा से डर रहा है. मुझे समस्या तो समझ आ गयी पर मैं उसको कैसे समझाऊँ, यह समझ नहीं आ रहा था.
तभी अचानक, उसके कमरे से कुल्फी वाले कि घंटी सुनाई दी. मैंने पूछा कि तुम कुल्फी खाओगे. हमारे शहर में गर्मी जोरदार और कुल्फी शानदार मिलती है. तो अगर आपको डॉक्टर ने मना न किया हो तो आप दोपहर में कुल्फी खाये बिना रह नहीं सकते.

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तो हम कमरे से बाहर निकल कर लॉन में आये और रोहित ने कुल्फी वाले को आवाज़ लगायी. वह हमारी तरफ बढ़ा. टन टन की घंटी हमारे करीब आ गयी और साथ करीब आया उसको बेचने वाला. उम्र रोहित के बराबर या एक दो साल छोटी ही होगी. रोहित ने कहा दो कुल्फी देना, और वह उसको देने में व्यस्त हो गया. मेरा ध्यान उसके पहनावे पर गया. उसके कमीज़ के एक कंधे का भाग की सिलाई खुली हुई थी शर्ट में नीचे से एक दो बटन खुलकर कहीं गिरे होंगे ऐसा प्रतीत हो रहा था, ध्यान उसके चप्पल पर गयी तो थोड़ी और हैरानी हुई, उसके दोनों पावों में अलग अलग चप्पलें थी, एक में लाल रंग का फ़ीता था दूसरे में नीले रंग का.

इसी बीच एक और लड़का आया. उसकी उम्र मेरी ही जितनी रही होगी, वही २५-२६ साल की. उसने कुल्फी वाले से कहा की कुल्फी बना के पीछे वाली सड़क में आना. उस कुल्फी वाले लड़के ने मना कर दिया और बोला “मैं नहीं आऊंगा”. मैं थोड़ा हैरान हो गया कि कोई भी दुकानदार अपने ग्राहक से इतनी खीजता से तो बात नहीं ही करता है. फिर उस लड़के ने कुल्फी वाले से कहा “बेटा, आना तो पड़ेगा ही” और कह कर चला गया. मुझे माजरा समझ नहीं आया. पर कुल्फी वाले की आंखे सहम सी गयी थी.
खैर उसने कुल्फी तैयार किया और हमे बढ़ा दी. मैंने दाम पूछा तो, उसने ५० रुपये बताये. इसी बीच रोहित अपने जेब से 50 का नोट निकल कर देने लगा. मैंने कहा “औकात में रहो बच्चे, बड़ा मैं तो मैं ही दूंगा”. वह हँसने लगा और मैंने उसे नोट बढ़ा दी.

हम लॉन में कुल्फी खाने लगे. कुल्फी शानदार थी. एक शानदार खाने के बाद एक लज़ीज कुल्फी और वो भी चिलचिलाती गर्मी में. मज़ा आ गया. हम दो चार बार से ज़्यादा नहीं खाये थे की अचानक बाहर से शोर गुल और अफ़रा तफरी की आवाज़ आने लगी. बाहर झांक कर देखा तो दो लड़के उस कुल्फी वाले बच्चे की धुनाई कर रहे थे. एक ने उसके गले को पकड़ा हुआ था और दूसरा उसके कुल्फी के बक्से को ज़मीन पर उलट दिया . कुल्फी का छोटा छोटा डिब्बा, जिसमे कुल्फी जमती है ज़मीन पर बिखर गयी . कोई डिब्बा हरे रंग का था, कोई लाल तो, कोई नीला. मैं दौड़ कर उसकी ओर भागा . मेरे पीछे रोहित.
मुझे आता देख दोनों लड़के भागने लगे उसमें से एक चिल्ला कर बोला “कल से दिखना मत” और वे नज़र से ओझल हो गए. कुल्फी वाला लड़का अपने ठेले के बगल में बैठ अपनी बिखरी हुई कुल्फी की तरफ देख कर रो रहा था. ऐसा लग रहा था मनो किसी के ख्वाब ज़मीन पर बिखर गए हों. रोहित और मैं कुल्फी के डिब्बे को एक एक कर उठा कर उसके ठेले में रख रहे थे. वह अब भी ज़मीन पर बैठा था मनो उसका पूरा मनोबल टूट कर बिखर गया हो.
मैंने उससे पूछा की “आखिर हुआ क्या, उन लड़कों ने तुम्हे क्यों मारा”? उसने अपने साहस को जुटा, अपने शर्ट के बाजु से आँख को पोछते हुए कहा “वो दोनों भी कुल्फी वाले हैं. मुझे मना किया था इस इलाके में आने से क्योंकि वो कहते हैं ये उनका इलाका है .मैं दूसरे मोहल्ले में गया था पर वहाँ बिक्री नहीं हुई. ठेला और ये बक्सा किराये पर लिया है. एक दिन का दोनों मिलाकर 100 रूपया. बिकेगा नहीं तो चुकाऊंगा कैसे. घर में माँ बीमार है, छोटी बहन का स्कूल फी है”. मैंने पूछा पापा क्या करते हैं? उसने कहा “दारू पीकर कहीं पड़े होंगे”. मैंने पूछा “अब  तुम क्या करोगे”. उसने बड़ी दृढ़ता से जवाब दिया “क्या करूँगा? यही करूँगा कि कल फिर इसी मोहल्ले में आऊंगा और यहीं कुल्फी बेचूँगा, देखता हूँ वो कितना मारते हैं.

मैं हैरान, हतप्रभ. इसी बीच मेरी नज़र रोहित पर पड़ी, उसकी आँखों से आंसू धरल्ले से निकल रहे थे. मुझसे नज़र मिलते ही उसका ह्रदय और भर आया और अपनी जेब में से 150 रुपये (जो शायद उसके पास उतने ही होंगे) निकाल कर कुल्फी वाले बच्चे की हाथ में थमा घर की ओर भागा. कुल्फी वाले बच्चे ने उस पैसे को रख लिया और मुझे धन्यवाद कहकर ठेला लेकर जाने लगा. वह ठेले की  घंटी को बजा बजा कर लोगों को सूचित कर रहा था कि कुल्फी वाला आया हैं, सिर्फ लोगों को सूचित ही नहीं उस घंटी की  आवाज़ में उन दोनों लड़कों को चुनौती भी थी कि वह लड़का डरने वाला नहीं हैं.

रोहित घर में, ठीक उसी के उम्र का कुल्फी वाला मेरी दूसरी ओर ठेला लेकर बढ़ रहा था. मैं बीच में खड़ा न आगे बढ़ पा रहा थे न पीछे जा पा रहा था. तभी रोहित घर से निकला. जाते समय उसकी आँखों में आँसू थे, पर अब उसका चेहरा मुस्कुरा रहा था. उसने कहा  “उस लड़के के कॉम्पटीशन   के आगे मेरा कॉम्पटीशन  तो कुछ भी नहीं हैं . मैं IIT -JEE की तैयारी करूँगा, पुरे मन लगा के. माँ पापा को आप बता दीजियेगा.”

जब कुत्ते पीछे पड़ते हैं :-P

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तो कल शाम मुझे जैसे ही मेरे छोटे भाई का फ़ोन आया कि मुझे उसे लेने को स्टेशन जाना होगा, मैं थोड़ा सकपकाया. वजह भी आपको बता दूँ. मेरे घर से रेलवे स्टेशन की दूरी ज्यादा नहीं है, वही दो से ढाई किलोमीटर होगी और न ही मुझे रात से डर लगता हैं. फिर आप सोच रहे होंगे की आखिर वजह क्या थी? वजह थे कुत्ते.

मुझको बताने में रत्ती भर भी शर्म नहीं आती कि मुझे आवारा कुत्तों से डर लगता है. जब वो झुण्ड बना के जोरदार आवाज़ में भों- भों कर भौंकते हुए पीछे पड़ते हैं, तो सच में मैं हिल जाता हूँ तथा प्रार्थना और दौड़ स्वाभाविक हो जाती है.

जब भाई ने कहा कि उसकी ट्रेन रात 2:30 बजे आने वाली है, मैंने कहा “सुबह नहीं आ सकते थे”. वह समझ गया कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, और वो हंस के बोला आप मत आइएगा, मैं खुद कैब कर आ जाऊंगा. पर उसे भी पता था कि पापा या तो खुद आएंगे या मुझे भेजेंगे. मैंने कहा रहने दो अकेले आने की जरुरत नहीं है, मैं आ जाऊंगा.

दूरी ज्यादा नहीं हैं, पर मेरे घर से स्टेशन के बीच में एक बाजार पड़ता हैं, वही इलाका बहुत खतरनाक हैं. खतरनाक इसलिए कि वहां कुत्ते बहुतायत होते हैं और रात में तो मानो उनका एकक्षत्र राज चलता हैं. हालिया दिनों में मैंने अनुभव किया कि आवारा कुत्तों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. मानो जैसे  भारत की जनसंख्या विस्फोट में वे पुरजोड़ तरीके से सहयोग कर रहे हैं.

मेरे कुत्तों से डर की वजह का भी इतिहास रहा है, और इतिहास लंबे समय में ही बनता है. तो ऐसा समझिये कि मेरा और कुत्तों के बीच का संघर्ष  बचपन से चला आ रहा हैं. न जाने कितनी बार मैंने दौड़ लगायी होगी, अब तो गिनती भी याद नहीं, पर एक बात है कि कुत्ते एक बार भी काट नहीं पाए. हर बार मैं जीता. गिर-पड़ के ही सही हर बार मैं बचा और यदि कोई सिनेमा निर्देशक मेरी हरेक दौड़ और उससे जनित परिस्थिति पर फिल्म बनाये तो वह “भाग मिल्खा भाग” से ज्यादा रोमांचित और जोश भरने वाली होगी.

खैर छोड़िये, रात ढली और और ज्यों ज्यों समय नजदीक आया तो मैंने पापा से पूछा कि एक बात बताइये कि जब कुत्ता भौंके तो क्या करना चाहिए. वे हँस पड़े और बोले रहने दो मैं ले आऊंगा उसको. माँ भी हँसी रोक न पायी. मैं तुरंत अपनी बचाव में उतरा और बोला ऐसा नहीं हैं कि मैं कुत्ते से डरता हूँ, बस यूँ ही पूछ रहा हूँ, बचाव तो जरुरी हैं न. इस कथन ने मानो उत्प्रेरक (Catalyst) का काम किया हो. दोनों और जोड़ से हँसे. पापा बोले जब कुत्ता भौंके तो अपनी जगह पर रुक जाना चाहिए और धीरे-धीरे आगे निकलना चाहिए, कुत्ते खुद ही चले जायेंगे . मैं लपक कर बोला आप क्या बोल रहे हैं?? कुत्ते की ध्वनि कान के परदे और मन के साहस को झकझोरने वाली होती है, अगर मैं रुकुंगा तो वे काट नहीं लेंगे? वे बोले एक बार रुक कर देखना. मैंने बोला ऐसा कभी नहीं होगा, वो काट ही खाएंगे. वे फिर बोले कि चलो कोई बात नहीं तुम चिंता मत करो सो जाओ मैं ले आऊंगा. मैंने किसी तरह उनको मनाया कि आप सो जाइये मैं ही ले आऊंगा.अब तो इज़्ज़त की भी बात थी.

जब उन्हें भरोसा हो पाया कि मैं सच में जाऊंगा तो वे सोने चले गए और मैं अपने को युद्ध के लिए मानसिक तौर पर तैयार करने में लग गया.

तब वह समय भी आ गया, मैंने अपनी बाइक निकली और युद्ध भूमि की ओर कूच किया.जैसे ही बाजार के पास पहुँचा, हुआ वही जिसकी आशंका थी. 5-6 नहीं बल्कि कम से कम 10-15 कुत्ते पीछे पड़ गए, सिर्फ पीछे ही नहीं बल्कि अगल- बगल और कुछ तो आगे आगे भी दौड़ रहे थे. चारो तरफ सुनसान था. किसी से उम्मीद भी न थी, मैंने अपने पैर को गियर और ब्रेक से हटा ऊपर कर लिया जिससे कि कुत्ते काट न ले.

हद्द तो तब हो गयी जब झुण्ड में से एक कुत्ता बिलकुल गाड़ी के नीचे ही आने वाला था. कुछ भी हो सकता था, मैं गाड़ी से गिर सकता था या उसको इस जनम से मुक्ति मिल जाती. अब मुझे गुस्सा आ रहा था. अनायास ही मैंने गाड़ी रोकने का फैसला किया और सोचा कि देखते हैं कि आखिर ये दौड़ते क्यों हैं मुझे? पर उसके बाद जो हुआ मेरे लिए सुखद आश्चर्य से कम था.

पापा से पहले भी यह सिद्धान्त कि “कुत्ता दौड़ाये तो भागना नहीं चाहिए”, कई बार सुना था और जितनी बार भी सुना हर बार इसकी भर्त्सना मैंने की. पर आज प्रत्यक्ष अनुभव कर रहा था. सभी कुत्ते आस पास रुक गए थे , कोई भी मेरी तरफ आगे नहीं आ रहा था, पर हाँ उनका भौकना बंद नहीं हुआ था. मैंने यह देख धीरे धीरे गाड़ी आगे बढ़ाना शुरू किया, वो अब भी भौंक रहे थे पर आगे नहीं बढ़ रहे थे. धीरे धीरे मैं स्टेशन तक पहुँच ही गया. सिर्फ स्टेशन तक ही नहीं पहुँचा बल्कि एक और लक्ष्य की भी प्राप्ति हुई . मैं आपको कह दूँ की इस घटना के पश्चात कुत्तों से मेरा डर लगभग खत्म हो गया.

घटना ने मुझे बहुत प्रभावित किया. अक्सर हम ज़िन्दगी में किसी न किसी परेशानी से घिरे होते हैं. और कई बार तो किसी परेशानी का डर मन में इस कदर घर कर गया होता है कि हम जीना भूलकर उस परेशानी के बारे में ही सोचते रह जाते है. डर का सामना सामने से करना चाहिए, सफल हुए तो वह जड़ से खत्म हो जाती है. जब कोई संकट से हम भयभीत होकर बचते हैं, तो अक्सर हम पाते हैं कि किसी न किसी रूप में वह वापस आ जाती है. मुझे लगा कि हमें उनसे भागना नहीं चाहिए, पर खड़े होकर, दृढ़ता के साथ, डट कर मुकाबला करना चाहिए. क्योंकि डर में जीना कोई अच्छी बात तो है नहीं ..

विश्वास और परिश्रम

अंग्रेजी कैलेंडर में नया वर्ष आ चुका है, वर्ष 2017. सोचा कि वर्डप्रेस पर अंग्रेजी नववर्ष की शुरुआत, नए वर्ष में लिखे अपने एक मुक्तक से करूँ. वैसे तो आप सब जानते होंगें कि मुक्तक काव्य शैली की ही एक विधा हैं. मुक्तक वह काव्य है जिसमें विचार का प्रवाह किसी एक निश्चित दिशा में नहीं होता बल्कि टेढ़ा-मेढ़ा (नॉन-लिनियर) चलता है, पर यह आवश्यक शर्त (necessary condition) नहीं है और यह कविताओं कि तरह लंबी भी नहीं होती. पढ़िए और मुझ तक पहुँचाइये कि आपको कैसी लगी.

विश्वास और परिश्रम

बाधायें बन पर्वत आती है तो आये

दुविधाएं, जो लोगों के मन को विचलित कर जाये

पर होता जिसे खुद पर दृढ़ विश्वास है,

मंज़िल तब दूर नहीं , बिलकुल उसके पास है

 

सुबह की धुन्ध को “आलसवस” , जो रात समझ कर थे सो गए

अपने चुने ही रास्तों में , जाने कहाँ वो खो गए

पर रुके नहीं जो रातों में , शर्दी में या बरसातों में

मिलते उन्हें ही हैं रास्ते  , जो जीते हैं सदा लक्ष्य के वास्ते

……………….अभय………………..

खुद में नायक/नायिका ढूंढे

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आसमान में युद्ध के बादल फिर से

उमड़ घुमड़ कर छा रहे

हाय! कमजोड़ ह्रदय वाले नर-नारी

भेड़सम घबरा रहे

एक शेर है इन भेड़ो में

पर वह किंकर्तव्यविमूढ है

पिछली मिली हार के कारण  

आज वह सन्देहमय है

पिछला जब रण हुआ था ,

भीषण वो संगम हुआ था

रक्त की नदियां बही थी

नेत्र अश्रुमग्न हुआ था

असत्य सत्य पर भारी था

मानवता बर्बरता से हारा था

छल प्रपंच से भरे रण में

नायक भी सर्वस्व हारा था

हारा बैठा था नदी किनारे

गिन रहा था गगन के तारे

तभी एक सयोंग घटा

नदी के तट पर उसे साधु दिखा

देख उन्हें उसने नमन किया

साधु ने भी आशीर्वचन दिया

साधु अंतर्यामी था

दशा से उसके ज्ञानी था

नायक के मन को वे टटोल गए

उत्साह बढे जिससे नायक का

कुछ ऐसे वचन वो बोल गए

“चुप हो क्यों , शोर मचाते नहीं

युद्ध के इस भीषण घड़ी में

अपने सस्त्र क्यों उठाते नहीं

तुम्हारी ये अकर्मण्यता देख

शत्रु अब थर्राते नहीं

वीरता को हर पल ,

प्रमाणित करना पड़ेगा

एक ऋतु के काटे फसल से

कहो पूरा जीवन कैसे चलेगा ?

याद करो इतिहास में

तुमने जब जब गुर्राया था

देख जिसे दुर्जनो का

अंतर्मन तक थर्राया था .

चलो उठो साहस जुटाओ

नभ तक हो ऊँची सत्य की

ऐसी पताका फहराओ”!!!

……..अभय………

शब्द सहयोग:
किंकर्तव्यविमूढ: क्या करें क्या न करें की स्थिति, indecisiveness.