नमस्ते दोस्तों, आज आप लोगों के लिए वीर रस की एक कविता. एकदम ताज़ी. मुझ तक पहुँचाना मत भूलिये कि कैसी लगी
ललकार
सुनसान हर गलियां यहाँ की
स्वाभिमान सबका सो रहा
शेर पहन गीदड़ की खालें
झुण्ड में क्यों रो रहा
झुण्ड में क्यों रो रहा
चुनौतियों से लड़ने का साहस
क्यों क्षिन्न होता जा रहा
पराक्रम जाने आज क्यों
पल्लुओं के पीछे घर बना रहा
पल्लुओं के पीछे घर बना रहा
हथियार सब धरी पड़ी हैं
सजोसज्जा के काम आ रहा
युद्ध की ललकार सुनकर भी
वो शांति का पाठ पढ़ा रहा
शांति का पाठ पढ़ा रहा
पुरुषार्थी हो, तो साबित करो
लोग प्रमाण मांगते हैं
मस्तक ऊँचा करके जीने की
कीमत वही जानते है
जो खुद को पुरुषार्थी मानते हैं
खुद को पुरुषार्थी मानते हैं
…….अभय ……