
चक्रवात
ये जो तेरी यादों का समंदर है
लगे जैसे कोई बवंडर है
मैं ज्यों ही करता इनपे दृष्टिपात
मन में उठता कोई भीषण चक्रवात
मैं बीच बवंडर के आ जाता हूँ
और क्षत विछत हो जाता हूँ
इसमें चक्रवात का क्या जाता है
वह तो तांडव को ही आता है
अपने हिस्से की तबाही मचा कर
वह जाने कहाँ खो जाता है
मैं तिनका-तिनका जुटाता हूँ
और फिर से खड़ा हो जाता हूँ
पर, तेरी यादों की है इतनी आदत
ए चक्रवात ! तुम्हारा फिर से स्वागत
……अभय…..
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