
भूमिपुत्र
मेरे देश में अब भी कृषक
भूखे पेट सोता है
हत्यारे कर्ज के बोझ तले वह
बिलख बिलख कर रोता है
सरकारें आती हैं
सरकारें जाती हैं
उनकी वयथा फिर भी
जस की तस रह जाती हैं
हमे शर्म नहीं क्यों आता जब
खुद को हम कृषि प्रधान देश कहते हैं
कृषकों के नाम पर राजनीति करके
नेता केवल अपनी जेब भरते हैं
डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनेगा
इंजीनियर का बेटा खुद को इंजीनियर कहेगा
पर कृषकों की यही व्यथा रही तो
देश में न कोई भूमिपुत्र बचेगा
तो क्या सॉफ्टवेयर हम खायेंगे ?
या बढ़ते हुए GDP का गुण जाएंगे ?
या डेवलपिंग कंट्री के तमगे से
खुद को सांत्वना देते रह जायेंगे
……….अभय…….
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