गीत गाऊँ

जीवन में अगणित फूल खिले
सुख के दिन चार ,
दुःख की कई रात मिले
आशाओं की ऊँची अट्टालिकाएं सजाई
नियति को उनमे , कई रास न आयी
कुछ ही उनमे आबाद हुए
कई टूटे , कई बर्बाद हुए
किसे दोष दूँ मैं ,
किसे दुःख सुनाऊँ
जाने मैं कौन सा गीत गाऊँ

स्वयं की खोज में मैंने
कईयों को पढ़ा
सैकड़ों ज़िंदगियाँ जी ली मैंने
मैं सहस्त्रों बार मरा
सोचा था कि तुम संग,
चिर अन्नंत तक चलोगे
मुझे क्या पता था कि तुम
पग – पग पर डरोगे
किसे मैं जीवन के ये अनुभव सुनाऊँ
जाने मैं कौन सा गीत गाऊँ

ये भ्रम में न रहना कि
मैंने ये दुःख में लिखा है
या अपने आसुंओ को मैंने
स्याही चुना है
ये उनके लिए हैं
जो ज़िंदा लाश नहीं हैं
या उनके लिए है
जिन्हे अभी खुद पर विश्वास नहीं है
अन्नंत आघात हैं मुझपर, फिर भी मुस्कुराऊँ
“विपदाओं में टूटकर बिखरो नहीं”, मैं यही गीत गाऊँ

……….अभय ………

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कागज़ी पतंग

कागज़ी पतंग

मैं धरती पर पड़ा था
रद्दी कागज का जैसे कोई टुकड़ा
बना पतंग आसमान में मुझको
आपने भेजा,
ढील दी
दूसरे दानवी पतंगों से मुझे बचाया
मैं ऊपर चढ़ता रहा
बढ़ता गया
बादलों से भी ऊपर
अनंत गगन में
उन्मुक्त, स्वतंत्र
कि अब मुझमें ऊंचाई का
नशा छा गया है
कि अब मुझे धरती भी नहीं दिखती
दिखता है तो केवल
स्वर्णिम आकाश
और ये भी नहीं दिखता कि
मेरा डोर किसी ने थामा था
थामा है
छूटी डोर तो मेरा क्या होगा!
होगा क्या?
मैं फिर वही
रद्दी कागज़ का टुकड़ा

……अभय…..

जी लें आज को…

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Sun Dial, Credit: Google

 

जी लें आज को…

 

डूबे हो क्यों अतीत में ,

फिर से आता क्या वो कल है!

हँसना तुम आज में सीख लो

जो है बस यही पल है..

 

कल हुए सफल तो उसका

कब तक तुम जश्न मनाओगे

या किसी बिगड़ी बातों से हो आहात

कब तक अश्क़ बहाओगे

जो बीती सो बात गयी

कब आगे को कदम बढ़ाओगे

आज में , हर-रोज उभरते हैं प्रश्न नए

हर दिन मिलता उनका हल है!

हँसना तुम आज में सीख लो

जो है बस यही पल है..

 

कभी अतीत से निकल भविष्य में

खुद को हम ले जाते

मन मुताबिक सुन्दर सा

सपनों का महल सजाते

पर दिवा स्वपन तो व्यर्थ है होता

न ही मिलता उससे कोई फल है

जो है केवल पुरुषार्थ आज का

होता इसमें ही बल है!

हँसना तुम आज में सीख लो

जो है बस यही पल है..

 

वर्तमान में रह कर ही तो

मंज़िल कइयों ने पायी है

जीवन रूपी इस नैय्या ने

जाने कितने सागर पर लगायी है!

बीते हुए कल को छोड़ो

भविष्य में क्या होगा! इससे मुह मोड़ो

अनुभव करो इस वर्तमान को

पीकर देखो, होता इसका मीठा कितना जल है

हँसना तुम आज में सीख लो

जो है बस यही पल है..

 

………अभय………

मंज़िल मेरी ….

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Clicked it in Bay of Bengal 

मंज़िल मेरी ….

हूँ किस दिशा से आया,
जाना मुझे किधर है
हो मिलन जहाँ तेरा मेरा,
मंज़िल मेरी उधर है

आसमान से उतरी
और जब धरा पे ठहरी
अमावस की वो काली रात मानो
पूर्णमासी में हो बदली
कैसा अनुपम और मधुर
होता वो पहर है
हो मिलन जहाँ तेरा मेरा
मंज़िल मेरी उधर है

दूबों पर पड़ी ओस जैसी
हो तुम निर्मल
फूलों की पंखुड़ियों जैसी
हो तुम कोमल
मेरे मन से टकराती हर पल
तेरी यादों की लहर है
हो मिलन जहाँ तेरा मेरा
मंज़िल मेरी उधर है

नज़रों से होकर ओझल
जाने कहाँ भटकती
बिन देखे तुम्हें एक पल भी
साँसे मेरी अटकती
लौट चलो हैं जहाँ शहर मेरा
कि वहीं कहीं, तेरा भी तो घर है
हो मिलन जहाँ तेरा मेरा
मंज़िल मेरी उधर है

………अभय …………

 

Hello Friends, Once again I have given a try to translate my poem in English. Hope those who don’t read or understand Hindi, it may help them a bit to get an idea behind it.

My Destiny…

Don’t know from where I have come,

Nor even know, where I have to go

Where our tryst will be

I consider it as my destiny

 

When you appeared from the sky

And stayed on earth

Even the darkest of nights

Turns in to full moon light

How incredible and sweet is that time!

Where our tryst will be

I consider it as my destiny.

 

You are pristine,

Same as the dew on the new blade of grass

You are delicate,

Same as flower petals.

My mind is always shoved

By waves of your memory.

Where our tryst will be

I consider it as my destiny

 

Where do you wander

By staying away from my sight

Without seeing you even for a second

I couldn’t breath right

Come and return to my city

Coz somewhere around there, your home too lies

Where our tryst will be

I consider it as my destiny.

 

मैं, मेरी परछाई

shadow

शनिवार. वीकेंड का पहला दिन, दिन भर की फुरसत और फुरसत में दिमाग कुछ ज्यादा चलता ही है. आज चला और कुछ विचार निकले. फिर उसने एक कविता का रूप लिया.आपके सामने है. आज ही लिखी , और सोचा आज ही पोस्ट कर दूँ, ज़्यादा रिव्यु नहीं कर पाया…

अग्रिम चेतावनी: प्रेमी प्रेमिका मेरे कविता की “परछाई” में अपने प्रेमी प्रेमिका को ढूंढने का प्रयास न करें, वरना कविता के अंत में अफ़सोस होगा  😜😛

मैं, मेरी परछाई

मैं, मेरी परछाई
आज शाम संग बैठे थे
भीड़ से दूर…
एक दूजे के करीब…

परछाई कहने लगी ,
प्रश्न है बहुत दिनों की ,
इज़ाज़त हो तो बयां करूँ
मैं हँसा और हँस के बोला
पूछना, जो पूछना हो ?

उसने बोला

“सबसे करीब तुम्हारे
बोलो कौन है ?
शोर मचाती है जो मन में
पर जुबान पर मौन है ?”

जो मैं कुछ बोलता ,
मन की गठरियों को
सामने उसके खोलता
उसके पहले वो बोल पड़ी
“अरे वो मैं हूँ पगले , मैं हूँ “!!

मैं थोड़ा चकराया ,
मासूमियत भरे उत्तर पर
मंद मंद मुस्काया
और पूछा
“वो कैसे ! फरमाइए “
अपने विचार पर ज़रा
LED वाला प्रकाश तो लाइए

भावना में वो बह गयी ,
और फिर जाने मुझसे क्या क्या कह गयी ,
आपको मैं सुनाता हूँ
बदले में आपका पूरा अटेंशन चाहता हूँ

वो बोली
“संग तुम्हारे हूँ तब से ,
है वज़ुद तुम्हारा जब से ,
तुम चलते हो
मैं चलती हूँ
रुकने से थम जाती हूँ

बिना अपेक्षा के आशा के
साथ तुम्हारे रहती हूँ
दुःख हो या सुख हो
हर भाव मैं सहती हूँ
कितने सावन बीत गए ,
और जितने भी सावन आयेंगे
जो कोई रहेगा साथ तुम्हारे तो
वो मैं हूँ बस मैं हूँ “
मैं बोल पड़ा
“बस कर पगली
अब क्या रुलायेगी ?
इतने दिनों की कहानी
सब ही आज कह जाएगी “

भावुक होता देख उसे
मैं बोला चलो चलते हैं
गाल फूला के आँख झुका के
संग मेरे हो चली

निकल पड़ा घर की ओर
सूरज भी ढलने लगा था
परछाई लंबी होने लगी थी
मैं छोटा लगने लगा था

तभी अचानक
अँधेरा छाया ,
ओर मैं खुद को अकेला पाया

कहाँ गयी मेरी परछाई ?
जो वफाई की दे रही थी दुहाई ?
अँधेरा आते ही सरक गयी
पतली गली से खिसक गयी

तभी मन में विचार आया ,
कभी परछाई आपकी ,
आपसे भी लंबी हो जाती है ,
पर बिन प्रकाश के वो भी ,
साथ छोड़ जाती है .
कोई साथ रहता जो अंधकार में आपके
वो आपकी  परछाई भी नहीं है
“केवल आप हो, और कोई नहीं है”
अब प्रश्न है कि आप कौन हो ?

…………अभय…………

मुखौटे/Masks

कॉलेज से कॉर्पोरेट में आने के कुछ ही दिनों बाद, यहाँ के वातावरण को देख चंद पंक्तियाँ मन में आयीं थी. ख़ैर अब तो कुछ समय यहाँ गुज़र गया हैं. अब मैं भी इसका हिस्सा हूँ, पर पंक्तियाँ अब भी प्रासंगिक हैं……सोचा कि आप सब तक भी ब्लॉग के माध्यम से इसको पहुंचा दूँ. आशा है आपको पसंद आयेगी .

Belonging from multilingual country, ubiquitous presence and acceptance of English and knowing that some of the reader base is from English background,  I tried to translate it. But I hardly believe that translation will do justice with the pristine typescript, which is in Hindi, as I lack poetic sense in English. Any way I have given a try. Hope you will like it.

 

चेहरे कम मुखौटे ज़्यादा

दिखतें हैं इस बाज़ार में

हम बेहतर हैं तुमसे!

सभी जुटे हैं इसी प्रयास में ||1||

जिसका चेहरा जितना बनावटी

वह उतना ही सफल है

छल प्रपंच से भरे खेल में

उसकी दांव प्रबल है ||2||

अपनापन का भाव कहाँ यहाँ पर

केवल स्वार्थ निहित है

भावना से भरे व्यक्ति की

हार यहाँ निश्चित है ||3||

…………अभय…………

Masks are conspicuous as the faces are heavily covered by it in this place. Most of them are engaged in proving themselves better than others. ||1||

Those who can mold their faces easily suiting to the person and circumstances they face, are assumed to be successful. In the world of  treachery and deceit , chances are there that they will emerge victorious. ||2||

Relationships are based on the vested interests of each other and those who are filled with emotions, for them situations are very bleak here ||3||

मनुष्य और रहस्य

छठ की शुभकामनायें !!! अंग्रेजी में एक लेख पढ़ रहा था, उसमे एक पंक्ति कुछ यूँ लिखी हुई थी कि “Man’s life is reflection of his thought, if he can change his thought then surely he can change his life” (मनुष्य का जीवन उसके सोच का परावर्तन है, अगर वह सोच बदल सकता है तो निश्चय ही जीवन भी). पढ़ कर उस वाक्य के विषय में सोचने लगा और पाया कि कितना सही लिखा था लेखक ने. कुछ और मन में विचार आता, इससे पहले मेरी चचेरी बहन जो कि मात्रा साढ़े ४ साल कि होगी, उसने तुतलाते हुए बोला, “क्या आप नदी नहीं जायेंगे छठ में”? मेरा मन नहीं कर रहा था, तो मैंने मना कर दिया और कहा कि सुबह को जाऊंगा. फिर उसने कहा “ठीक है आप ना मेरा ना एक सेल्फी (वह हरेक किस्म के फोटो लेने को सेल्फी ही कहती है ऐसा मैं समझा) तो ले लीजिये, देख नहीं रहे नया कपड़ा है”. मैं मासूमियत पे मुस्कुराया, पर उसकी मासूमियत का भ्रम थोड़े ही देर में दूर हो गया जब उसने फोटो लेने के बाद कहा, “आप ना इसको ना व्हाट्सअप (व्हाट्सएप्प नहीं ) और फेसलुक ( फेसबुक के बजाये) पर डाल दीजिये” मैं थोड़ा चकरा गया और सोचा कि इसको क्या हो गया है? इतनी छोटी है और व्हाट्सएप्प और फेसबुक की बात करती है. समझा कि अब मोगली, विन्नी द पूह, शक्तिमान और दादी कि कहानियों का दौर नहीं है.

थोड़ी देर बाद घर से सब चले गए और मैं अकेले में फिर से उस वाक्य को सोचने लगा, तभी अचानक कुछ पंक्तियाँ लय में मन में आने लगी और मैं मोबाइल फ़ोन पे लिखता गया, बाद में थोड़ी एडिटिंग के बाद उसने जो रूप लिया, आपके सामने है. एकदम ताजी, अभी-अभी तोड़ के लाया हूँ 🙂

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मनुष्य और रहस्य 

सुना है, हर कोई अपने दिल में
एक राज़ छिपाकर रखता है
लाख पूछ ले दुनियां
पर फिर भी वह चुप ही रहता है

सोचता हूँ, ऐसी भी क्या मज़बूरी होती
ऐसी भी क्या परेशानी है
सीने में जो दफ़्न होती
उसकी कोई अज़ीज कहानी है

कोई उन बातों को यादकर
इतिहास में डुबकी लगाता है
तो दूसरा उन्हें भूलकर
भविष्य की ओर कदम बढ़ाता है

पर फिर एक ऐसा मंज़र भी आता है
जब उन बातों से जुड़ा व्यक्ति पास आता है
लाख यतन करने पर भी
उन बातों को वो दबा नहीं पाता है

दिल में जमी जो बर्फ थी सदियों की
पल भर में पिघल जाती है
फिर वो बातें या तो जुबां से या आँखों से
झरझर कर बह आती है

मन हल्का सा लगने लगता है
चेहरा भी मुस्काता है
किसी तरह वह फिर हिम्मत करके
उन बातों पर फिर से परत चढ़ाता है

…………अभय…………