दूसरी तरफ से…….
दिल में बोझ लिए मैं
भटका इधर उधर
सोचा, कोई तो मिलेगा,
पुछेगा,
क्या हाल है मेरा
हूँ क्यों जर्जर पतझर सा
किस अवसाद ने घेरा
बंटेगा दर्द दिल का तो
मन, सुकून पायेगा
इस अनजान सी नगरी में
कौन जाने,
कोई अपना मिल जायेगा
बीते बरसों
कोई मिला न मुझको
पर मिली एक सच्चाई थी
हर किसी के दिल के अंदर
दर्द भरी इक खायी थी
फिर वो क्या किसी कि मदद करते
जो थे अकेले में आहें भरते
तो मैंने सोचा कि
चलो एक काम करते हैं
उनके ही दर्द बांटकर
कुछ अपने नाम करते हैं
यूँ ही चलता रहा फ़साना
कटते रहे दिन
भूल गया मैं कि
अपना कष्ट क्या था
उनके दर्द बाँटने का
अपना ही मज़ा था
……..अभय……
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