ढोंग
ढोंग करना अच्छा लगता है
तब, जब कि हम
धनवान हों तो, निर्धन का
ज्ञानी हों तो, अज्ञानी का
विनम्र हो, फिर अभिमानी का
होश में हैं, बेहोशी का
मदिरा छुई नहीं, मदहोशी का
राज़ पता हो, फिर ख़ामोशी का
जगे हुए हों, फिर सोने का
हर्षित मन हो, फिर रोने का
हरपल संग हों, पर उन्हें खोने का
भक्त हो ,तो अभक्ति का
कोमल ह्रदय हो, तब सख्ती का
मुखर हो, फिर मौन अभिव्यक्ति का
ढोंग करना अच्छा लगता है
…..अभय……