आज जो हुआ सवेरा,
पर सूरज कहाँ है?
अंधेरे में लिपटा
क्यों सारा आसमाँ है?
….अभय….
आज जो हुआ सवेरा,
पर सूरज कहाँ है?
अंधेरे में लिपटा
क्यों सारा आसमाँ है?
….अभय….
इन चौड़ी दरारों में आकर भी
जो हम जो न धँसे!!!
तेरी आँखों में था क्या ऐसा
जो आकर हम फँसे!!!
……अभय……
स्वार्थ, दम्भ औ’ गर्व का पिंजरा
लटकता टँगा रह जाता है
प्रेम का पंक्षी दह जाता है
इतिहास सदा ये कह जाता है
….अभय….
The cage (Selfishness and Pride) burns the bird (Love). This is happening since generations.
पतझर में पेड़ों से पत्ते,
नीचे गिर आते हैं
वसंत आते ही पेड़ों पर पत्ते,
वापस से आ जाते हैं
जो नज़रों से गिर जाएँ
उनके उठने का
कोई मौसम नहीं होता
……अभय……
बसंत तो अब बीत चुका है
कुहू तो बस अब मौन रहेगा
क्षितिज पर कालिख बदरी छायी है
सब दादुर अब टर-टर करेगा
~अभय
Spring has gone
Cuckoo will not sing any more
Dark clouds are hovering in the sky
Oh! It’s time for the frogs
~Abhay
कुहू- कोयल
दादुर- मेढ़क
आप पंक्तियों को खुद से जोड़ पाए तो मैं अपनी सफलता मानूंगा..
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