माँ ..

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कोई विश्व विजय को जाता है
पर सब कुछ हार वो आता है
संचित सारा धन खो जाता है
वर्षों का ज्ञान व्यर्थ नज़र आता है
सम्मान धरा पर सोता है
पुरुषार्थ प्रश्न में होता है
अपने मुख से भी वो डरता है
न वो जीता है न मरता है
बस एक आश्रय अब बच जाता है
वो माँ की शरण में आता है
जहाँ धन, सम्मान औ’ ज्ञान की बातें
सभी फीकी हो जाती है
क्या जीत है, हार है क्या
माँ को दोनों, एक नज़र आती हैं
गोद में माँ के सर रखकर
चैन की नींद वो सोता है
जिस विश्व विजय को निकला था वो
सारा सुख उसी गोद में होता है
अनायास ही आर्शीवचन से
उसमे शक्ति संचरण होता है
जीवन के व्यापक अर्थ का
ज्ञान प्रकाशित होता है
अनाशक्त अविचल भाव से
वो फिर खड़ा हो जाता है
अगले समर की रणचंडी को
फिर से वो जगाता है
फिर विश्व विजय को जाता है

……..अभय ……..

P.S. Generally mother’s are recognized as personification of Love, Kindness, Compassion, Affection and Attachment, I tried to portray them in different shade in this poetry. Incidentally, tomorrow being the Mother’s Day, when this platform will be flooded with the gratitude towards Mom, I hope you will find this post relevant. Do let me know about your valuable views on my writing.

ओ माँ ..

समयाभाववश कविता को उतना लयबद्ध नहीं कर पाया, जितनी मेरी अपेक्षा थी. पर भावनाएं हर क्षण लय में ही हो, यह आवश्यक नहीं. सो मैं इस कविता को यथारूप प्रेषित कर रहा हूँ, पहुँचाना मत भूलिए कि कैसी लगी..

ओ माँ ..

बिन अपराध किये भी जग के
कई आरोप सह जाता हूँ
एक माँ की नज़रें ही है जहाँ
दोषी रहकर भी, हर पल खुद को
मैं निर्दोष पाता हूँ!

बिना शर्त सम्बन्ध की बातें,
कहाँ सुनने को मिलती हैं!
एक सम्बन्ध है इन शर्तों से ऊपर
माँ का स्नेह मुझपर,
हरक्षण झर झर कर बहती है!

जटिल जगत है, कुटिल है दुनियाँ
षड़यंत्र हर पग पर मिलते हैं
माँ की निर्मल सरलता
और स्नेहमयी आशीर्वचन से
हर पग फूल खिलतें हैं

……अभय…..