तिमिर हारे..

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तिमिर हारे,
चहुँदिशि प्रकाश ही प्रकाश हो
अयोध्या रुपी शरीर में
ह्रदय रूपी सिंहासन पर
श्रीराम जी का वास हो
फिर, उल्लास ही उल्लास हो

                                                ~अभय

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12 thoughts on “तिमिर हारे..”

  1. ॐ शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसंपदः ।
    शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिनमोऽस्तु ते ॥

    दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योति जनार्दनः ।
    दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तुते ॥

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  2. बिल्कुल सही विचार।वैसे जिस मातृभूमि की मिट्टी को चौदह वर्षों तक प्रभु राम वन में रहते हुए भी पूजते रहे खेद है आज कब्रिस्तान और श्मशान बनाने को जगह मिल जा रहा है मगर उनकी प्रतिमा स्थापित करने के लिए बहुसंख्यक को जद्दोजहद करना पड़ रहा है। ऐसे में दुख से कहना पड़ रहा है—–
    हे राम अवध को छोड़ चलो ये देश नही अब तेरा,
    जिस मिट्टी में तूँ जन्म लिए है छाया वहाँ अंधेरा।

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  3. बहुत खूब लिखा है आपने। राम की मूर्ति के साथ उनके विचार और उनका चरित्र के कुछ अंश भी अपने अंदर देखने को मिल जाय तो सोने पर सुहागा हो जाय और कलयुग में भी मानव के रूप में कल्कि का अवतार हो जाय। पर सम्भव नहीं।

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