कोई विश्व विजय को जाता है
पर सब कुछ हार वो आता है
संचित सारा धन खो जाता है
वर्षों का ज्ञान व्यर्थ नज़र आता है
सम्मान धरा पर सोता है
पुरुषार्थ प्रश्न में होता है
अपने मुख से भी वो डरता है
न वो जीता है न मरता है
बस एक आश्रय अब बच जाता है
वो माँ की शरण में आता है
जहाँ धन, सम्मान औ’ ज्ञान की बातें
सभी फीकी हो जाती है
क्या जीत है, हार है क्या
माँ को दोनों, एक नज़र आती हैं
गोद में माँ के सर रखकर
चैन की नींद वो सोता है
जिस विश्व विजय को निकला था वो
सारा सुख उसी गोद में होता है
अनायास ही आर्शीवचन से
उसमे शक्ति संचरण होता है
जीवन के व्यापक अर्थ का
ज्ञान प्रकाशित होता है
अनाशक्त अविचल भाव से
वो फिर खड़ा हो जाता है
अगले समर की रणचंडी को
फिर से वो जगाता है
फिर विश्व विजय को जाता है
……..अभय ……..
P.S. Generally mother’s are recognized as personification of Love, Kindness, Compassion, Affection and Attachment, I tried to portray them in different shade in this poetry. Incidentally, tomorrow being the Mother’s Day, when this platform will be flooded with the gratitude towards Mom, I hope you will find this post relevant. Do let me know about your valuable views on my writing.
माँ
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बहुत खूब अभय जी बहुत ही लिखा है। मदर्स डे पर माँ को समर्पित कविता है क्या? वैसे आपकी कविता में विषय वस्तु की अधिकता काविले तारीफ है और समझने के लिए कई बार पढना पड़ता है तब समझ में आता है कि ये विषय कहाँ कहाँ इंगित कर रहा है जैसे अगले समय की रणचंडी——जाता है। माँ को सम्बोधित कर बहुत कुछ कह दिया है आपने। वैसे रणचंडी शब्द से ध्यान आया इस शब्द प्रयोग कर मैं एक धर्मयुग की जो मेरी कल्पना है उसकी स्तुति की थी जो इस प्रकार था कुछ पल रही है प्रचंड चंडिका अभिमान भोजन कर रही क्रोध से जन्मी हुई ज्ञानी अभी है बालिका। गर्व जब हो खण्ड खण्ड प्रसन्न हो तब चडिंका। चलिए मैंने अपनी धर्मयुग की कल्पना की लिखी डायरी जला डाली थी आपके एक शब्द से रण चंडी शब्द ने मुझे मेरी स्तुति याद आ गई जल्दी ही लिखकर पोस्ट करूगीं शुक्रिया इसके लिए भी। वैसे मैंने आपको गुरु माना है इसमें भी कोई रहस्य छिपा होगा। 😊😊
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*अच्छा लिखा है आपने।
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माँ को तो मैं नहीं सुनाऊँगा! पर ये हर माँ के लिए उपयुक्त है! मैं और गुरु😂😂
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Beautiful poem and word itself is so adorable and strong
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Thanks so much. Pleased that you liked it!
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You have gone beyond the known symbolism and expanded the portfolio of mother by unfolding more of her attributes. True and beautifully expressed. Happy Mothers’ Day.
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Thanks Pramod Sir for your kind words! It’s the subject which can’t be expressed in words, yet I tried my bit.
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This is for 365 Days Mother’s Day
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Indeed it is.
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बहुत ही सुंदर,,,, 😊👌
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शुक्रिया तनु!
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Beautiful, just like, “माँ” ! 🌸
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Thanks Amulya!
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Bahot khubsurat
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बहुत बहुत शुक्रिया
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Behatreen
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धन्यवाद!
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बहुत ही खूबसूरत—–जरा हट के।
जहाँ धन, सम्मान औ’ ज्ञान की बातें
सभी फीकी हो जाती है
क्या जीत है, हार है क्या
माँ को दोनों, एक नज़र आती हैं
गोद में माँ के सर रखकर
चैन की नींद वो सोता है।
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शुक्रिया मधुसूदन जी!
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your poem about Mother is very beautiful , sorry Iread it late. but was truly into the core of your ideas.
regards
brij kaul
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Thanks so much Sir for your kind gesture!🙏
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welcome sirji
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मेरी आंसुओं को
आंचल में पिरोती है
माँ संसार मे
सबसे अनमोल होती है
इस माँ के लिए सिर्फ एक दिन???
मैं किन शब्दों में बयान करूँ
माँ – क्या होती है????
“जिसके जीवन माँ नहीं उस से पूछो माँ – क्या होती है”
I appreciate your way of writing. Visit my blog post, if you like then follow me & give your valuable suggestion in my post. Keep writing Sir☺
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Nicely written! Followed your blog.🙋
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Thank You Sir😃
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It’s touching.
Be happy and keep sharing.
I would love to know your thoughts about my posts.
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Thank You for reading and appreciating. Will share my views on your post too.
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माँ जैसे कोमल विषय पर इतनी ओजमयी कविता पहले नहीं पढ़ी। इसमें ख़ूबसूरती के साथ साथ नयापन भी है।
माँ के दुपट्टे का वो कोना ….
https://mummykiduniya.wordpress.com/2018/07/18/maa-ka-dupatta/
माँ के दुपट्टे का वो कोना जिसे छोड़कर
खुद को समझा बड़ा कई साल मैंने
माँ ने भी सालों गलतियों पे डांटा नहीं
ना ही किये मुझसे कोई सवाल,
पर उसे मेरी फिक्र मुझसे भी ज़्यादा रही
उसकी आंखें सब देखती रहीं समझती रहीं ।
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Dhanyavaad Divya! Khush hoon ki apko raas aaya! Apki lekhni ka bhi jawab nahi!
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